विहंगम योग स्वामी सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज
विहंगम योग एक प्राचीन ध्यान पद्धति है, जिसे भारतीय ऋषि-मुनियों ने आत्मिक उन्नति के लिए अपनाया था। वर्तमान युग में इसे महर्षि सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने पुनः स्थापित किया। यह योग विद्या ब्रह्मविद्या, मधु-विद्या और परा विद्या के नाम से भी जानी जाती है। “विहंगम” शब्द का अर्थ होता है “पक्षी”—जिस प्रकार एक पक्षी पृथ्वी से उड़कर आकाश में स्वतंत्र रूप से विचरण करता है, उसी प्रकार विहंगम योग आत्मा को प्रकृति के बंधनों से मुक्त कर उसकी वास्तविक स्वतंत्र अवस्था में पहुंचाता है।
विहंगम योग संगठन और उद्देश्य
विहंगम योग संगठन एक NGO है, जो योग और उन्नत ध्यान तकनीक के माध्यम से मानव जीवन को आध्यात्मिक, मानसिक और शारीरिक रूप से समृद्ध करने के उद्देश्य से कार्यरत है। इसकी स्थापना 1924 में सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज ने की थी।

उन्होंने लगभग 17 वर्षों तक कठोर ध्यान साधना करके इस अद्भुत ध्यान पद्धति की खोज की। उन्होंने अपने उत्तराधिकारी के रूप में सद्गुरु श्री धर्मचंद्र देव जी महाराज को नियुक्त किया, जिन्होंने 1969 तक 15 वर्षों तक इस परंपरा को आगे बढ़ाया। वर्तमान समय में सद्गुरु स्वातंत्रदेव जी महाराज के दिव्य मार्गदर्शन में विहंगम योग का प्रचार-प्रसार 35 से अधिक देशों में किया जा चुका है और इसके हजारों आश्रमों के माध्यम से 50 लाख से अधिक साधकों के जीवन को रूपांतरित किया गया है।
विहंगम योग की विशेषता
विहंगम योग की ध्यान तकनीक अत्यधिक प्रभावशाली मानी जाती है। यह व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा को जागृत करने की शक्ति रखती है और इसे नियमित रूप से सिर्फ 15 मिनट प्रतिदिन करने से असीमित लाभ प्राप्त किए जा सकते हैं।
इसके वैज्ञानिक प्रमाण भी मिल चुके हैं। CIP रांची और इटली की बर्गामो यूनिवर्सिटी में हुए शोध में यह पाया गया कि यह ध्यान विधि मस्तिष्क और शरीर पर गहरा सकारात्मक प्रभाव डालती है। भारत, रूस और अमेरिका में भी इस ध्यान पद्धति पर अनुसंधान कार्य जारी हैं।
About Sadguru Sadafaldeo ji maharaj

महर्षि सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज – जीवन परिचय
- महर्षि सद्गुरु सदाफल देव जी महाराज का जन्म विक्रम संवत 1945 (1888 ई.) में भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को हुआ था।
- वे महर्षि श्रृंगी जी की वंश परंपरा से संबंध रखते थे।
- उनके पूर्वज बाबा लालजी राव (छह पीढ़ी पहले) एक महान योगी थे, जो लगातार छह महीने तक ध्यान में स्थित रहते थे।
- उन्होंने 17 वर्षों तक कठोर योग साधना कर विहंगम योग का पुनः प्राकट्य किया।
- वे आत्मा के सर्वोच्च रहस्यों को जानकर योगिक शक्तियों से शरीर का त्याग कर सकते थे और अंतरिक्ष से वाणी द्वारा उपदेश देने में सक्षम थे।
- उन्होंने 35 आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना की, जिनमें से स्वरवेद को आध्यात्मिकता का विश्वकोश माना जाता है।
- 1954 में, योग विधि द्वारा अपने पार्थिव शरीर का त्याग कर, उन्होंने अपने उत्तराधिकारी सद्गुरु धर्मचंद्र देव जी महाराज को संपूर्ण दिव्य ज्ञान सौंप दिया।
Symbol of Vihangam Yoga

स्वरवेद कथा और विहंगम योग का महत्व
स्वरवेद कथा विहंगम योग का प्रमुख आध्यात्मिक ग्रंथ है, जो आत्मा, परमात्मा, सृष्टि और ध्यान की गूढ़ विधियों पर प्रकाश डालता है। इस ग्रंथ के माध्यम से कोई भी योग के सर्वोच्च रहस्यों को जान सकता है और आत्मा की शक्ति को जागृत कर सकता है।
Founder and Successors of vihangam yoga swami sadguru sadafal dev ji maharaj
Maharshi Sadguru Sadafaldeo ji maharaj

विहंगम योग की शक्ति और आत्मिक जागरण
विहंगम योग साधना से व्यक्ति अपने आत्मिक बल को बढ़ा सकता है और आंतरिक शक्ति को जागृत कर सकता है। इस ध्यान पद्धति से व्यक्ति मन और प्राण से अलग होकर आत्मा के शुद्ध स्वरूप को प्राप्त कर सकता है। जब आत्मा अपनी असली स्थिति में आती है, तभी वह परमात्मा से सच्ची प्रार्थना कर सकती है और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है।
Acharya Shri Sadguru Dharamchandradeo ji Maharaj

आचार्य श्री सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज – ब्रह्मविद्या प्रचार में एक युगपुरुष
आचार्य श्री सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज ने अपना सम्पूर्ण जीवन ब्रह्मविद्या (जिसे विहंगम योग भी कहा जाता है) के प्रचार-प्रसार में समर्पित कर दिया। उनका उद्देश्य था कि यह दिव्य ज्ञान संपूर्ण मानवता तक पहुंचे और प्रत्येक व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से सशक्त होकर आत्मकल्याण के पथ पर अग्रसर हो सके।
सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज का योगदान
सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज का सबसे महत्वपूर्ण योगदान स्वरवेद की गूढ़ व्याख्या करना था।
स्वरवेद एक अत्यंत रहस्यमय और गूढ़ आध्यात्मिक ग्रंथ है, जिसमें आत्मा, परमात्मा, सृष्टि और ध्यान की उच्चतम विधियों का गहन वर्णन किया गया है। अपनी मूल स्वरूप में यह इतना जटिल था कि आम मनुष्य के लिए इसकी गहराइयों को समझ पाना लगभग असंभव था।
परंतु धर्मचंद्रदेव जी महाराज की दिव्य दृष्टि और आध्यात्मिक ज्ञान के कारण, उन्होंने स्वरवेद के गुप्त रहस्यों को प्रकट किया। उन्होंने इसके गूढ़ श्लोकों की व्याख्या इस प्रकार की कि सामान्य व्यक्ति भी इसे समझकर आध्यात्मिक उन्नति कर सके।
स्वरवेद की व्याख्या और ब्रह्मविद्या का प्रसार
स्वरवेद में जो गूढ़ रहस्य छिपे थे, उन्हें सरल भाषा में प्रस्तुत कर सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज ने समस्त मानव जाति को ब्रह्मविद्या विहंगम योग के प्रकाश से आलोकित कर दिया। यदि उन्होंने इसकी व्याख्या न की होती, तो संपूर्ण मानवता इस दिव्य ज्ञान से वंचित रह जाती।
उनकी व्याख्या ने यह सुनिश्चित किया कि आध्यात्मिक जिज्ञासु स्वरवेद को पढ़कर ब्रह्मविद्या के गूढ़ रहस्यों को समझ सकें और अपनी आत्मा को परमात्मा के निकट ले जाने का मार्ग प्रशस्त कर सकें।
अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों की रचना
स्वरवेद की व्याख्या के अतिरिक्त, सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज ने दस अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों की भी रचना की, जिनमें विभिन्न आध्यात्मिक विषयों और मानव कल्याण के गूढ़ पहलुओं को विस्तृत रूप से समझाया गया है।
इन ग्रंथों में ध्यान, योग, आत्मा और परमात्मा के संबंध, मानवीय आचरण, जीवन जीने की सही विधि, ब्रह्मज्ञान, साधना एवं मोक्ष के रहस्य जैसी महत्वपूर्ण बातें सम्मिलित हैं।
1969 में समाधि
सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज ने 1969 में अपनी समाधि ली, किंतु उनके द्वारा दिए गए ज्ञान और शिक्षाएं आज भी लाखों लोगों को आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग दिखा रही हैं।
Acharya Shri Sadguru Swatantradeo ji Maharaj

आचार्य श्री सद्गुरु स्वातंत्रदेव जी महाराज – एक दिव्य जीवन परिचय
आचार्य श्री सद्गुरु स्वातंत्रदेव जी महाराज एक दिव्य आत्मा के रूप में इस संसार में अवतरित हुए। उनका जन्म एक विशिष्ट आध्यात्मिक उद्देश्य के साथ हुआ था। बचपन से ही वे अत्यंत तेजस्वी, प्रखर बुद्धि वाले एवं आध्यात्मिक चिंतन में गहरी रुचि रखने वाले थे।
सद्गुरु शक्ति का अधिग्रहण
केवल 22 वर्ष की आयु में उन्होंने सद्गुरु शक्ति के प्रबल प्रवाह को पूर्णतः आत्मसात कर लिया। यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं थी, बल्कि यह प्रमाण था कि वे ईश्वरीय अनुग्रह से युक्त एक महान आत्मा हैं। इस दिव्य योग्यता के कारण सद्गुरु धर्मचंद्रदेव जी महाराज के पश्चात उन्हें विहंगम योग परंपरा का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया।
ईश्वरीय शक्तियों से संपन्न
सद्गुरु स्वातंत्रदेव जी महाराज को बीस दिव्य आध्यात्मिक शक्तियों का वरदान प्राप्त है। ये शक्तियाँ केवल बाह्य रूप से नहीं, बल्कि आत्मा के गूढ़तम रहस्यों को जानने और साधकों को उनके वास्तविक स्वरूप से अवगत कराने की क्षमता प्रदान करती हैं। उनके नेतृत्व में विहंगम योग ने अभूतपूर्व विकास किया है।
विहंगम योग का वैश्विक विस्तार
आज सद्गुरु स्वातंत्रदेव जी महाराज के पावन मार्गदर्शन में, विहंगम योग 35 से अधिक देशों में अपनी आध्यात्मिक ज्योति फैला चुका है। हजारों आश्रमों और ध्यान केंद्रों के माध्यम से इस दिव्य ज्ञान का प्रसार हो रहा है। उनके मार्गदर्शन में 50 लाख से अधिक साधक विभिन्न देशों, संस्कृतियों, जातियों एवं वर्गों से जुड़े हुए हैं और नियमित रूप से विहंगम योग ध्यान का अभ्यास कर रहे हैं।
संसार में आध्यात्मिक जागरण की अलख
सद्गुरु स्वातंत्रदेव जी महाराज का उद्देश्य केवल योग का प्रचार करना नहीं है, बल्कि पूरे विश्व में आध्यात्मिक जागरण की अलख जगाना है। वे सदैव कहते हैं कि विहंगम योग केवल एक साधना पद्धति नहीं, बल्कि आत्मा के पूर्ण कल्याण का विज्ञान है। उनकी दिव्य उपस्थिति एवं मार्गदर्शन से लाखों लोग अपने जीवन में शांति, संतुलन, आत्म-साक्षात्कार और मोक्ष की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं।
Sadguru Vandana By Ravi Sarda
jai swami sadguru sadafal dev ji maharaj !!
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